आज़ादी के अमृत वर्ष में इतिहास की आफ़त.!

● 1857 के वर्षों बाद जन्मे विवेकानंद
और रमण महर्षि को क्रांति का अग्रगामी बताया
● इतिहास का ‘भुरकुस’ उड़ाने में भारत सरकार के PIB का महती ‘योगदान’

०डॉ राकेश पाठक
इधर देश अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है उधर सरकार और सरकारी अमले मूर्खता का ‘महायज्ञ’ कर रहे हैं। इस अहम अवसर पर ‘इतिहास’ पर तो जैसे आफ़त ही आन पड़ी है।
इतिहास का ‘भुरकुस’ उड़ाने के अपने ‘मुखिया’ के महाअभियान में अब भारत सरकार के ‘पत्र सूचना कार्यालय’ (PIB) ने आहुति दी है।
पीआईबी की पाक्षिक पत्रिका में 1857 की क्रांति के वर्षों बाद जन्मे स्वामी विवेकानंद और रमण महर्षि को क्रांति का ‘अग्रगामी’ बताया गया है। और तो और पंद्रहवीं सदी के चैतन्य महाप्रभु को भी इसी कतार में खड़ा कर दिया है।
◆ आइये जानिए पूरा मामला..
भारत सरकार का पत्र सूचना कार्यालय (प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो PIB) एक पाक्षिक पत्रिका निकालता है।
नाम है-NEW INDIA SAMACHAR
जनवरी माह के पहले अंक में कवर स्टोरी छपी है
AMRIT YEAR: TOWARDS A GOLDEN ERA
इस कवर स्टोरी के Inspiration from History शीर्षक वाले पेज़ पर ‘गोल्डन पीरियड’ वाले बुलेट पॉइंट्स में ‘भक्ति आंदोलन’ का उल्लेख है।
इसमें भक्ति युग की आध्यात्मिक चेतना में संत,महंतों के योगदान के बारे में बताते हुए दावा किया गया है कि स्वामी विवेकानंद, चैतन्य महाप्रभु और रमण महर्षि 1857 की क्रांति के अग्रगामी (Precursor) थे।
यह तथ्य पूरी तरह ग़लत है।
★ क्रांति के वर्षों बाद जन्मे विवेकानंद और रमण
पत्रिका में स्वामी विवेकानंद और रमण महर्षि को 1857 की क्रांति के लिये अग्रगामी बताया गया है जबकि विवेकानंद का जन्म क्रांति के छह साल बाद 12 जनवरी 1863 को हुआ।
रमण महर्षि का जन्म तो क्रांति के 22 साल बाद 30 दिसम्बर 1879 को हुआ।
धरती पर आने से पहले ही ये दोनों महापुरुष किस रूप में क्रांति के अग्रगामी बने यह तो पत्रिका के सम्पादक ही बता सकते हैं।
★क्रांति से सदियों पहले जन्मे चैतन्य महाप्रभु
पत्रिका में भक्ति काल के महान संत चैतन्य महाप्रभु को भी 1857 की क्रांति का ‘अग्रगामी’ बताया गया है जबकि उनका जन्म क्रांति से कई सदी पहले 18 फरवरी 1486 में हुआ था।
यानी पंद्रहवीं सदी में जबकि क्रांति हुई उन्नीसवीं सदी में।
क़रीब पांच सदी पहले चैतन्य महाप्रभु क्रांति के अग्रगामी कैसे बने यह बड़ा सवाल है।
★ सबसे सीनियर आईआईएस हैं संपादक
पीआईबी की इस पत्रिका न्यू इंडिया समाचार के संपादक जयदीप भटनागर हैं। जयदीप पीआईबी के प्रिंसपल डायरेक्टर जनरल हैं। वे भारतीय सूचना सेवा(इंडियन इन्फॉर्मेशन सर्विस) के सबसे वरिष्ठ अधिकारी हैं।
प्रसंगवश:
पत्रिका में जिस भक्ति आंदोलन/ भक्ति काल का हवाला दिया गया है उसका काल सन 1350 से 1670 (या सन 1375 से 1700) तक माना जाता है।
इस युग को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘भक्ति काल’ कहा है। जॉर्ज ग्रियर्सन ने ‘स्वर्णकाल’ कहा और हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने इसे ‘लोक जागरण’ कहा है।
आध्यात्मिक पुनर्जागरण के इस युग को भी 1857 की क्रांति के अनेक कारणों में से एक माना जाता है।