जंगे-आज़ादी में चंबल घाटी के सूरमा (भाग-3)
सिंधिया की मदद से क्रान्तिकारियों पर टूटा
० मिहोना(भिंड) की मुठभेड़ में 35 क्रांतिकारी शहीद
० पंडित गेंदालाल दीक्षित और लक्ष्मणानंद गिरफ़्तार
० ग्वालियर किले के तहख़ाने में लम्बी कैद
० डॉ राकेश पाठक
अब तक आपने पढ़ा कि
चंबल घाटी में पंडित गेंदालाल दीक्षित और उनके साथियों ने गुप्त क्रांतिकारी संगठन ‘शिवाजी समिति’ और ‘मातृवेदी’ का गठन कर लिया था। मातृवेदी की सशस्त्र पलटन भी तैयार हो चुकी थी।
यह दल 1915 की विफल बग़ावत के बाद गोपनीय नहीं रह सका और भेद खुल गया।
० #गतांकसेआगे….
दरअसल पंजाब में भेद खुलने से रासबिहारी बोस,शचीन्द्रनाथ सान्याल आदि की योजना वाली 1915 की बग़ावत विफल हो गई थी। इससे संबंधित लोगों की गिरफ़्तारियों के बाद ही अंग्रेजी हुक़ूमत को ‘मातृवेदी’ दल के बारे में सुराग लगा।
इसके बावज़ूद गेंदालाल और साथी नाम और भेस बदल कर संगठन का विस्तार करते रहे। संगठन के लिए ग्वालियर, राजपूताना, बंगाल,बर्मा आदि से हथियारों की आमद लगातार हो रही थी।बड़ी वारदातों के जरिये क्रांति के लिये धन और हथियार जुटाना जारी था।
अब तक अंग्रेजों ने इस संगठन के खिलाफ़ अपना मुखबिर तंत्र फैला दिया था। एक दफ़ा गेंदालाल और साथी राजा की मंडी स्टेशन पर चुंगी अधिकारी को नज़र में चढ़ गये। ये लोग संदूक में बंदूक, तमंचे और कारतूस लेकर आ रहे थे।
इस मौके पर बड़ी मुश्किल से हथियार छोड़ कर फरार होना पड़ा।
आगे भी अंग्रेजों और क्रांतिकारियों के इस दल में आंख मिचौनी चलती रही।
० #पर्चे ,पोस्टर और किताबों से अंग्रेज हलाकान
मातृवेदी दल में एक प्रकाशन विभाग भी था। यह विभाग क्रांति के विचारों को पर्चे,पोस्टर पर छपवा कर गोपनीय तरीके से लोगों के बीच पहुंचाता था।
सन 1916 में 28 फरवरी और 2 मार्च की रात में संगठन के इसी विभाग ने देश भर में दीवारों पर एक पोस्टर लगाया गया। पोस्टर पर लिखा था- ‘अंग्रेजों को मार डालो और आज़ाद रहो’।
इन पोस्टरों से अंग्रेजी हुक़ूमत में हड़कंप मच गया लेकिन पोस्टर लगाने वाले ‘मातृवेदी’ के क्रांतिकारी पुलिस के हाथ नहीं आये।
संगठन ने दुनिया की दूसरी क्रांतियों पर किताबें भी छापीं।
इनमें से एक किताब थी -‘ अमरीका को स्वाधीनता कैसे मिली।’ इसे संगठन के प्रचार,प्रसार प्रमुख देवनारायण भारतीय ने रामप्रसाद बिस्मिल के साथ संकलित,सम्पादित किया था।
इस किताब में क्रांति के जरिये अंग्रेज सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया गया था सो इसे संयुक्त प्रांत की सरकार ने ज़ब्त कर लिया।
बाद में बिस्मिल, शिवचरणलाल शर्मा ने बची हुई प्रतियां दिल्ली के कांग्रेस अधिवेशन में बेचने की कोशिश की लेकिन अंग्रेजों ने वहां भी दबिश दे दी। शर्मा पकड़े गए और बिस्मिल बाक़ी साथियों के साथ फरार हो गए।
० मिहोना की ऐतिहासिक मुठभेड़ और गिरफ़्तारी


सन 1917 आते आते अंग्रेज सरकार गेंदालाल और उनके संगठन के पीछे हाथ धोकर पड़ चुकी थी। ये लोग लगातार भूमिगत रह कर काम कर रहे थे। गेंदालाल के गाँव,घर तक पुलिस की दबिश पड़ने लगीं थीं।इसी दौरान गेंदालाल कोटा में नाम बदल कर रहे और पुलिस कप्तान तक की बेटी को ट्यूशन पढ़ाई।
मातृवेदी और शिवाजी समिति की गतिविधियों से परेशान अंग्रेज सरकार ने मलाया से एक तेज़ तर्रार पुलिस अफ़सर यंग को बुला कर भदावर (आगरा) में तैनात किया। उसे मातृवेदी और शिवाजी समिति की धर पकड़ का ज़िम्मा सौंपा गया।
कमिश्नर यंग ने ग्वालियर की सिंधिया रियासत के महाराजा से संपर्क किया। उसने गेंदालाल के ख़िलाफ़ अभियान में मदद के लिए सिंधिया को कई पत्र लिखे।
इसी दौरान संगठन किसी बड़ी योजना पर अमल के लिये भिंड जिले के मिहोना के घने जंगल में डेरा डाले था। गेंदालाल दीक्षित के अलावा दस्यु सरगना पंचम सिंह,ब्रह्मचारी लक्ष्मणानंद, मन्नू राजा आदि सहित 90 लोगों की हथियारबंद पलटन वहां इकट्ठा थी।
पुलिस कमिश्नर यंग को दल के ही एक भेदिये हिन्दू सिंह के जरिये गेंदालाल और पूरी पलटन की इत्तला मिल गयी। हिन्दू सिंह असल में दस्यु सरगना पंचम सिंह के दल का सदस्य था। यंग ने उसे अपना भेदिया बना लिया था। वह पास के ही गांव का रहने वाला था।
मातृवेदी दल के भारी हथियारों से लैस होने की इत्तला भी इसी गद्दार ने यंग को दे दी।
दल के पास भारी असलहा होने की ख़बर मिलने पर यंग ने ग्वालियर के सिंधिया से फौज़ और रिजर्व पुलिस भी मंगवा ली।
अंग्रेजों और सिंधिया की फौज,पुलिस ने जंगल के चारों तरफ़ चुपचाप घेरा डाल दिया।
यंग की योजना के मुताबिक एक दिन गद्दार हिन्दू सिंह ने पूड़ियों में ज़हर मिला कर गेंदालाल और सबको खाने को दे दिया।
वो अभागी तारीख़ थी सन 1918 की 31 जनवरी। दल के लोगों ने खाना शुरू किया और बेहोश होने लगे।
ब्रह्मचारी लक्ष्मणानंद ने आधी पूड़ी ही खाई थी कि उनकी जीभ ऐंठने लगी। गेंदालाल भी होश में थे। ब्रह्मचारी को खाना लेकर आये हिन्दू सिंह पर शक हो गया।
गद्दार हिन्दू सिंह ने पानी लेने के बहाने भागने की कोशिश की तब ब्रह्मचारी ने उस पर गोली चला दी।
अंग्रेजों और सिंधिया की फ़ौज चारों तरफ़ से घेरा डाली पड़ी ही थी। गोली की आवाज़ से उसे एकदम सटीक जगह का पता मिल गया।
दोनों तरफ़ से जमकर गोलियां चलीं और अंततः 35 बागी,क्रांतिकारी इस मुठभेड़ में शहीद हो गये।
गोली लगने से घायल गेंदालाल ब्रह्मचारी लक्ष्मणानंद और पंचम सिंह सहित कई लोग गिरफ़्तार कर लिये गए। मन्नू राजा और कई साथी फरार होने में कामयाब रहे।
गेंदालाल आदि को पहले भिंड हवालात में फिर अगले दिन ग्वालियर के किले पर मानमंदिर महल के तहख़ाने में कैद कर दिया गया। (जारी….)
अगले भाग में….
० ग्वालियर किले से मुक्त कराने की बिस्मिल की क़वायद
० मैनपुरी षड्यंत्र केस का ख़ुलासा और हवालात से फ़रारी
संदर्भ:
1) पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा
2) मासिक पत्रिका प्रभा में बिस्मिल का लेख
3) पत्रकार शाह आलम Shah Alam की किताब-
कमांडर इन चीफ़: गेंदालाल दीक्षित
चित्र: A) पत्रकार शाह आलम की किताब का मुखपृष्ठ
B) ग्वालियर दुर्ग का तहख़ाना जहां गेंदालाल कैद रहे