राष्ट्र निर्माण के अप्रतिम योद्धा एस एन सुब्बाराव

०जयंत सिंह तोमर
अप्रतिम गांधीवादी एस एन सुब्बाराव भाई जी का निधन हो गया है।
सुब्बाराव जी का जाना शांति की दिशा में अपने ढंग से प्रयासरत व्यक्तित्व का हमारे बीच से विदा होना है ।
उन्हें एक स्वस्थ और लम्बा जीवन मिला।
हाफ पैंट और और खादी की शर्ट उनकी विशिष्ट पहचान थी ।
नैशनल यूथ प्रोजेक्ट के माध्यम से सुब्बाराव जी ने देश के हर प्रांत में एकता- शिविर लगाये और युवाओं को एक दूसरे के निकट लाये ।
ग्वालियर चंबल के जो लोग पचास साल पहले किशोर हुआ करते थे उनके मन पर सुब्बाराव जी ने गहरा असर डाला और बागी समस्या से पीड़ित इस इलाके के लोगों के व्यवहार- परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभाई।
आधी शताब्दी पहले जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चंबल में साढ़े पांच सौ से ज्यादा बागियों का सामूहिक समर्पण हुआ तब धरातल पर संयोजन का काम सुब्बाराव जी ने ही किया। तब केरल के एक किशोर राजगोपाल पीवी को वे यहाँ लेकर आये थे जिन्हें आज दुनिया शांति के क्षेत्र में एक प्रकाश- स्तम्भ के रूप में देख रही है ।
सुब्बाराव जी बागी -समर्पण के दिनों में पुनर्वास का महत्वपूर्ण जिम्मा सम्हाल रहे थे ।
राष्ट्रीय सेवा दल के संस्थापक हार्डीकर ने सुब्बाराव जी के जीवन को एक सार्थक दिशा देने का काम किया। आज देश के विश्वविद्यालयों में एनसीसी की तरह जो राष्ट्रीय सेवा योजना है वह भी सुब्बाराव जी की पहल का परिणाम है । ‘ करें राष्ट्र निर्माण बनायें मिट्टी से अब सोना ‘ युवाओं के कंठ में और मन में उन्हीके कारण बैठा ।
गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली का कमरा नंबर 11 सुब्बाराव जी से मिलने की जगह रही । जीवन भर में उन्हें सम्मान स्वरूप जो स्मृति – चिह्न मिले उनसे वह कमरा अटा रहता था। अब वह सब रनसिंह परमार जी के प्रयासों से मुरैना जिले के जौरा स्थित महात्मा गांधी सेवा आश्रम से आ गया है और एक सुन्दर संग्रहालय के स्वरूप में मौजूद है।
आइटीएम विश्वविद्यालय ग्वालियर ने पहले ‘ बादशाह खान स्मृति अलंकरण’ से सुब्बाराव जी को विभूषित किया था।
सुब्बाराव जी से जुड़ी अनेक स्मृतियाँ देशवासियों के मन को आलोकित करती रहेंगी। उनकी सद्भावना रेल यात्रा और असंख्य एकता शिविर सबको याद आते रहेंगे।
नब्बे साल की उम्र में भी वे सीधे खड़े होकर बोलते थे और चलते थे ।
चंबल क्षेत्र के गाँवों में सरकार से बहुत पहले श्रमदान से अनेक सड़क, पुल सुब्बाराव जी की पहल से बने । वह एक अलग ही दौर था। आज चंबल के लोग आधी रात को भी अकेले मुरैना से श्योपुर तक जा सकते हैं। एक समय था जब सूरज ढलने के बाद नहीं निकल सकते थे । बागी पकड़ लेते थे। वातावरण बदलने में सुब्बाराव जी और उनके सहयोगियों की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है वह अब पता नहीं कितने लोग महसूस कर पाते हैं।