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क्या इतिहास के लिए भविष्य को दांव पर लगा दिया जाए? 

क्या इतिहास के लिए भविष्य को दांव पर लगा दिया जाए?
० सी पी राय
इतिहास में बहुत सी लड़ाइयाँ हुयी हैं नवाबों कि नवाबों से , राजाओं की राजाओं से , भाइयों की भाइयों से और उनमें खूब लूटपाट हुयी , हत्याए हुयी , धोखे भी हुए ।
एंगिल देखा जाए और जाति का आधार ढूँढा जाए तथा नफ़रत फैलाना ही उद्देश्य हो तो हज़ारो साल पहले एक लड़ाई हुयी थी जिसमें एक ब्राह्मण की बहन के साथ कुछ हुआ , फिर एक क्षत्रीय की पत्नी के साथ हुआ और फिर क्षेत्रीय ने ब्राह्मण को सिर्फ़ मारा नहीं बल्कि उसका राज जला दिया
तो क्या उसको घृणा के लिए इस्तेमाल किया जाए और आज उस हजारों साल पहले की घटना पर ये दोनों जातीयां लड़ मरें?
उसके बाद एक परिवार के बीच में ही झगड़ा हुआ उसमें भी पत्नी की बेइज़्ज़ती तथा राजकाज पर क़ब्ज़े का मामला था पर अगर नफ़रत के सूत्र खोजने हों तो खोजा जा सकता है की ऐसा क्यों हुआ ? किसने किसको भड़काया ? किसने छल किया ? कौन ये झगड़ा और युद्ध रोक सकता था पर नहीं रोका ? ये अलग बात है युद्द के बाद या तो लाशें थी चारों तरफ़ या रोती हुयी विधवाएं और अनाथ अबोध बच्चे और युद्ध भूमि में रोता हुआ तथा अफ़सोस करता एक विजेता तथा पश्चाताप की आग में ज़लता या हताशा से ग्रस्त एक वृद्ध जो रोक सकता था सब पर सत्ता के अंध समर्थन में सच के साथ खड़ा नहीं हो सका ?
और फिर उसकी जाति तय कर आज नफ़रत भी फैलाई जा सकती है और आधार भी है की कौन नष्ट हो गया और युद्द के बाद कौन बच गया ?
तो उस आधार पर भी आज नफ़रत और मारकाट हो सकती है ?
एक सम्राट ने तो अपने भाइयों को मार दिया । तमाम अपने ही धर्म के राजाओं पर हमला किया । पता नहीं कितने लाख या  हज़ार मारे गए और फिर वो रक्त पात से इतना व्यथित हुआ की चल दिया अहिंसा का प्रचार करने ?
इस युद्ध में भी बहुत लोग मारे गए , बहुत से ख़ानदान साफ़ हो गए तो उसने भी नफ़रत के बिंदु खोज कर आज भी मारकाट हो सकती है ?
ऐसी हजारों कहानियाँ दर्ज हैं इतिहास में और उसने नफ़रत के तथा आज बदला लेने के लाखो सूत्र भी होंगे ही ।
तो क्या इतिहास खंगाल कर ये सूत्र खोजे जाए और आज उसका हिसाब किताब किया जाए ?
अब आधुनिक इतिहास पर आते हैं।
हां आक्रमण हए भारत पर , पर क्या केवल भारत पर आक्रमण हुए या जिस राजा या बादशाह या ताकतवर को जिधर अपने राज का विस्तार की सम्भावना दिखी या जहां से धन सम्पदा लूट सकने की सम्भावना दिखी उसने उधर ही आक्रमण कर दिया । हिंदू राजा ने हिंदू राजा पर , मुसलमान ने मुसलमान और हिंदू या ईसाई पर और ईसाई ने  ईसाई या मुसलमान या हिंदू पर ,
पर वो धर्म का धर्म पर या जाति का जाति पर हमला नहीं था बल्कि सीमा विस्तार तथा धन की लूट का मामला था ।
हिंदू राजा की तरफ़ से मुसलमान और मुसलमान की तरफ़ से हिंदू शामिल हए मारकाट और लूट में ।
वरना मुट्ठी भर मुसलमान आए थे तो करोड़ों हिंदुओं को लूट भी लिया और राज भी किया ।
ऐसे ही मुट्ठी भर अंग्रेज आए थे और भारत का खून भी चूसा , लूट कर ले गए और दो सौ साल राज भी किया तो किसके बूते पर ? भारत के ही हिंदू और मुसलमान के बूते पर क्योंकि आदेश मुग़ल या अंग्रेज का होता था पर जुल्म करने वाले लाठी और गोली चलाने वाले , लूट तथा हत्या करने वाले तो हिंदुस्तानी ही थे।
एक फ़र्क़ है मुग़ल में और अंग्रेज में की मुग़ल आक्रमणकारी बनकर आया पर यहीं का बन कर रह गया और लूट कर नहीं ले गया । बेशक सत्ता चलाने के लिए विरोधियों पर जुल्म तब भी हुए होंगे और आज भी होते हैं। पर अंग्रेज ने तो लाखों को मारा भी और भारत की धन सम्पदा लूट कर इसे खोखला कर गया । मुग़लों के समय भारत इतना सम्पन्न था की दुनिया की जीडीपी में इसका 25 % हिस्सा था और अंग्रेज के जाने के समय विपन्न हो चुका था। इसलिए अगर देश की बर्बादी और हत्या के नफ़रत ही करना है तो तीन लोगों से करना चाहिए।
नम्बर एक उन भारत के राजाओं से जिन्होंने मुग़लों और अंग्रेजो को आमंत्रित किया , उनकी सहायता की और उन्हें यहाँ स्थापित करने में मदद की। आपसी नफ़रत या एक दूसरे को बर्बाद करने के लिए।
नम्बर दो उन लाखों हिंदुस्तानियों से जिन्होंने मुग़लों और अंग्रेजो  की कि तरफ़ से जुल्म किया , लूट और हत्या किया और फिर नम्बर तीन पर अंग्रेजो से जो भारत को चूस कर खोखला कर गए तथा निरक्षर और मूर्ख बना गए , क्योंकि आर एस एस के संघचालक मोहन भागवत ने ही बयान दिया है की अंग्रेज़ो के आने के पहले भारत 71/72 % साक्षर था जबकि इंग्लैंड केवल 17% ।
अंत में जब मैं छोटा बच्चा था तो मेरे गाँव के पड़ोसी से आए दिन मेरे दादा जी , पिता जी और दोनो चाचा से गाली गलौज होती थी और लाठी तथा भाले निकल आते थे ।
अब मेरा परिवार ज्यादा सम्पन्न तथा प्रभावशाली हो गया है और उस परिवार में लोग उतने नहीं हैं।
तो क्या उस घटना का वर्णन हम लोगों को अपने आगे वाली पीढ़ियों को बता कर इस वक्त बदला आज़ हम भाई लोगों को ले लेना चाहिए और आने वाली पीढ़ियों को भी तैयार करना चाहिए की आने वाली पीढ़ियों को ये सब बताते जाते और हर पीढ़ी नफ़रत पाल कर रखे तथा बदला लेती रहे ?
या जैसे हमें हमारे बड़ों ने उस माहौल से दूर रख कर आगे बढ़ने का अवसर दिया उसी तरह हम आने वाली पीढ़ियों को भविष्य  के लिए और शिक्षित और सक्षम बनाए ?
बस इतना सा सवाल ही इस लेख का मक़सद है ।
(लेखक स्वतंत्र राजनीतिक  विचारक हैं)

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